Sunday, December 27, 2015

आर्यजन बचें हिन्दू शब्द के मोह से

'आर्यों' को हिन्दू शब्द का प्रयोग करना चाहिए या नहीं, यह शतक से अधिक से बहस का विषय रहा है । कुछ लोग  इसका प्रयोग अन्य हिन्दू समाज से जुड़े रहने की इच्छा से बहुतायत में करते हैं, कुछ संघ से जुड़कर करने लगते हैं, तथा कुछ कहीं कहीं आवश्यकता अनुसार करते हैं ।  परन्तु कुछ आर्यों का इसके प्रति अतिरेक मोह समझ में नहीं आता । कुछ पौराणिक यह दावा करते हैं, कि अथर्ववेद में विवहिंदु शब्द है, अतः यह शब्द वेद से निकला हैं ? वास्तव में अथर्ववेद में ऐसा कोई शब्द नहीं, तथा जिस मंत्र को लेकर ऐसा दावा किया जाता है, उसमें शब्द "विवभिन्दो" है । परन्तु यहाँ देखने में आता है, कुछ आर्य बंधू भी इस बहकावे में आ जाते हैं । कुछ समय पहले अपने नाम एक आगे 'आर्य' लिखने वाले एक महाशय पर हिन्दू होने का जोश ऐसा छाया की उन्होंने वेद वाक्य को ही बदल डाला । हुआ यों कि इन महाशय को कुछ वीडियो मिले जिनमे कुछ विदेशी एक वैष्णव गुरु के साथ "कृष्ण कृष्ण" का कीर्तन कर रहे थे तथा उन्होंने कृष्ण भक्ति को स्वीकार कर लिया था । अब स्वयं को आर्य कहने वाले  महाशय का जोश ऐसा गरमाया की यह वीडियो शेयर करते समय "कृण्वन्तो विशवमार्यम्" के स्थान पर "कृण्वन्तो विश्वमहिन्दुम" का नारा  लगाने लगे । पता नहीं कहाँ ले जाएगा इस  प्रकार का मोह जो वेदवाक्यों को ही बिगाड़ दे । एक अन्य दृष्टांत याद आता है जो थोड़ा अलग है । कुछ वर्ष पूर्व याहू पर आर्य समाज के कुछ ग्रुप बने । इधर साथ ही कहीं किसी ने प्रथम बार आर्य समाज की संस्था खोली । कुछ समय बाद उस संस्था से जुड़े एक महाशय ग्रुप के सदस्यों से कहने लगे कि भवन  ऊपर "आर्य समाज" शब्द देखकर लोग कंफ्यूज हो रहें है ? क्या हम इसके स्थान पर "हिन्दू समाज" लिख सकते हैं । मैंने जो कहना था कह दिया आगे आप स्वयं विचार करें |